इल्ज़ाम
इल्ज़ाम
हर इल्जाम मुझ पे यूँ ही लगाए गये,
हम गैरों से नहीं अपनों से हराये गये.
वो इश्क़ किये थे उसमें हर्ज क्या था.
खुद की जिंदगी फैसलों में गंवाए गये.
सुर्ख आंखों में जैसे काजल लगाये गये,
मोहब्बत में इस कदर घायल बनाये गए.
आवाजें चीख़ कर इंसाफ मांगती रही.
फिर भी अदालत में कसूरवार बनाये गए.
दिल को खिलौना समझकर वो कैसे,
खेलते रहे सदियों से आज तक.
मोहरे बनाकर हम भी बिकते गये....
