गुस्से पर जीत
गुस्से पर जीत
गुस्से पर जीत पाना है भारी, हर किसी को है ये दिल की बीमारी।
गुस्से की कोई सीमा नहीं, पर इसका अंत करना कोई महान प्रतिभा से कम नहीं।
ए गुस्सा, किस मिट्टी का है तू बना,
हर दिल पर राज तेरा, और हर घर पर छाया है बादल सा घना ।
ये कलयुग, ये कल के युग ने आज पहन ली है गुस्से की माला,
जहां गुस्से ने ले ली है हर घर की चाबी, और बुजुर्गों को थमा दिया है उसके प्रकोप का ताला ।
पर दिन वो अब दूर नहीं, जब शांति, प्यार और खुशी की होगी जीत,
हारेगा गुस्सा, और गुस्से से जुड़ी कर वो चीज़।।
