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Phool Singh

Inspirational

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Phool Singh

Inspirational

कर्ण का विवाह

कर्ण का विवाह

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प्रथम रुषाली कर्ण की पत्नी

जिसे पितृ इच्छा से पाता

दूसरी कहलाती सुप्रिया, खास भानुमती से जिसका नाता।।


अंसावरी को वही बचाता 

था आतंकवादियों ने जिसको घेरा  

प्रेम करती उससे पहले, फिर सुतपुत्र कह दुत्कारा।।


स्वयंवर जीता अंसावरी का

प्रेम था उससे करता

दुत्कार जिससे सह चुका था, अब स्वीकार न उसको करता।।


दासी पद्मावती उससे प्रेम थी करती 

विनती राजा से उसकी करता 

अटूट रिश्ता सदा उससे रहता, सच्ची संगनी जग पद्मावती को उसकी कहता।।


द्रौपदी स्वयंवर में आया कर्ण

दुर्योधन का सहायक बनता

पहली नजर में दिल हारता, जब द्रौपदी के सम्मुख पड़ता।।


स्वीकार न करती अपमानित करती  

वक़्त उसको फिर से छलता

अजीब स्थिति से उलझता हरदम, भावुक हृदय सूतपुत्र था।। 


दासियों ने ही स्वीकारा जिसको

जो महान धनुर्धर अपने वक़्त का

छलती आयी नियति हमेशा, पर वो सदा अपने कर्तव्य पथ पर बढ़ता।।


उसके होने न होने से फर्क न पड़ता 

अजीब जीवन का किस्सा 

दुर्योधन और कृष्ण समझते, मर्म उसके तड़पते मन का।।


उनसे हमेशा दुत्कार है खाता

जिनसे प्रेम सच्चा करता

सूतपुत्र होने का बड़ा मोल चुकाता, खुद को फिर भी जिंदा रखता।।


रुषाली-सुप्रिया बनी कई पुत्रों की माता

सुत युद्ध की बलि में चढ़ता 

महाकाल का तांडव जिसमे, जिंदा वृषकेतु ही बचता।।


इन्द्रप्रस्थ का राजा उसे बनाकर 

युधिष्ठिर गज़ब का निर्णय सुनाता

अनूठा रिश्ता उससे निभाकर, अपने धर्म के पक्ष को रखता।।


धर्म की स्थापना कर सभी ने

धर्म को जिंदा रखा

अपने-अपने कर्तव्य में निपुण रहे सब, सबका सुख-सुविधा में जीवन कटता।।


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