अनदेखी
अनदेखी
जीना नहीं किसीको हज़ारो साल
फिर इकट्ठा करते क्यों इतना माल?
खानदानी मची रहती बीच गोलमाल
शंका के दायरे में रहती उसकी चाल
पानखरके पत्तेकी तरह खरते बाल
बन जाती बचपन मे शिर पे टाल
मगरमच्छ जैसी मोटी अंगकी खाल
टमाटर की तरह होते गोरे गाल
खाकर गाँव की रोटी चमकता भाल
टपोरी बन जाते उसके दो चार लाल
फैलाते रहते दिन भर बुरी जाल
गरीब से भी कहते कुछ तो डाल
जीना नहीं किसीको हज़ारो साल
बिन घोटाले पचती नहीं रोटी दाल