राब्ता :दिल से दिल का
राब्ता :दिल से दिल का
मित्रता,रिश्ता या आपसी नाता यूँ ही नहीं बनता,
पावन होता संजोग जब हो राब्ता:दिल से दिल का।
माँग लेते माफ़ी तो कभी कर देते गुनाह भी माफ़,
राब्ता दिल से दिल का हो तो इंसाफ में सौ ख़ून माफ़।
बातों का बतंगढ़ भी बनाते जब अपनों की हो बात,
राब्ता दिल का हो तो उठा देते सुप्त पड़ी वकालात।
तंज़ अनदेखा कर देते जानबूझकर जब कम मिलता मान,
पर दिलों के राब्ता में जरुरी हैं आत्मिक मान सम्मान।
बेचैन,बेपरवाह भी हुए जब करनी थी तेरी परवाह,
जताना भी जरुरी नहीं हैं जब मोहब्बत की हो बात।
कटुवचन बोलकर,जताकर मत कीजिये आहत,
नाजुक हैं राब्ता दिल से दिल मिलो जरा सम्भलकर।