कैसी ये मजबूरी
कैसी ये मजबूरी
न छोटी,
न बड़ी होती है ये मजबूरी,
दुनिया जिसका मज़ाक बनाता है वही होती है ये मजबूरी,
वैसे बता दूं उस दुनिया को कि मज़ाक उड़ाना नहीं होता है जरूरी,
क्यों कि ज़िंदगी ला खड़ा करती है मजबूरियां एक अनजान मोड़ पर,
जब इंसान बुराईयां अपना लेता है,
अच्छाई को छोड़ कर।
आखिर कैसी ये मजबूरी,
कोई मुझको ये बता दे क्यों है ये मजबूरी।
मर जाए वो मजबूरी,
जिनकी वजह से है ये दूरी,
आखिर क्यों है ये दूरी,
कैसी ये मजबूरी,
जब मिलना चाहे तो मिल ना सकें,
जब कहना चाहे तो कह ना सकें,
जब देखना चाहे तो देख ना सकें,
न हम दोनों में है कोई दूरी।
आखिर कैसी ये मजबूरी,
क्यों है ये मजबूरी।
बहुत कुछ है मेरी कमज़ोरी,
बस कह नहीं पाती यही तो है मजबूरी,
भला कोई क्यों नहीं समझ पाता मेरी खामोशी को,
वैसे ये खामोशी भी है मजबूरी,
कहीं नजदीकियां बढ़ाती है तो कहीं दूरी।
आखिर कैसी ये मजबूरी,
क्यों है इतनी दूरी,
भला कैसी ये मजबूरी।