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Ayusmati Sharma

Abstract

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Ayusmati Sharma

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मैं वक्त हूं जनाब !

मैं वक्त हूं जनाब !

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कभी उजड़े रिश्तों को ज़िंदा करता हूं,

तो कभी लोगों को उनकी एहमियत बताता हूं,

हर मोड़ पर मन में एक नया ख्वाब जगाता हूं,

जो किताब नहीं सिखाती वो भी सीखा देता हूं,

वैसे मैं दिखता तो नहीं,

पर लोगों को अच्छे बुरे दिन मैं ही दिखाता हूं।


कितना भी पकड़ लो,

फिसलता रहता हूं,

मैं वक्त हूं जनाब ! 

बदलता रहता हूं।


एक पल से दो पल तक नहीं रुकता हूं,

हर पल गुजरता जाता हूं,

मेरे गुजरने का अफ़सोस दिलाता हूं,

और असर कुछ गहरा छोड़ जाता हूं,

गम और खुशियां भेंट में देता हूं,

किसी को खुशहाल तो

किसी को खामोश बनाता हूं।


कितना भी पकड़ लो,

 फिसलता रहता हूं,

मैं वक्त हूं जनाब ! 

 बदलता रहता हूं।


अपने रफ़्तार में हमेशा मस्त रहता हूं,

जिस कदर तेज़ी से चलता हूं

उस कदर तुम्हे यातना दिलाता हूं,

तुम्हे पल-पल सताता हूं,

सैलाब सी आंखों में आंसू भी लाता हूं,

मैं बुरा ज़रूर हूं,

पर बीत जाता हूं,

एक नया इतिहास बन जाता हूं।


कितना भी पकड़ लो,

फिसलता रहता हूं,

मैं वक्त हूं जनाब !

बदलता रहता हूं।


ठहरी हुई घड़ी में

भी नहीं ठहरता हूं,

एक बार गुज़र जाता हूं

तो लौट कर नहीं आता हूं,

क्या पता तुम्हें हंसाकर या

रुलाकर जाता हूं।


कितना भी पकड़ लो,

फिसलता रहता हूं,

मैं वक्त हूं जनाब !

बदलता रहता हूं।


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