यादों में बसा प्रथम प्रेमगीत
यादों में बसा प्रथम प्रेमगीत
मेरी यादों के रेडियो में
बजने वाला
प्रथम और शायद
अंतिम गीत
वह कोई भी हो
लेकिन यह तो निश्चित
तौर पर कहा जा सकता है कि
वह एक प्रेम गीत ही होगा
प्रेम ही तो एकमात्र
ऐसी अनुभूति होती है जो
किसी को भी आत्मविभोर करने की
ताकत रखती है
प्रेम का गीत ही तो
कानों को कर्णप्रिय लगता है
मन को छूकर गुजरता है
जीवन के रहस्यों को उजागर
करता है
तन को आनंदित करता है
आत्मा को फूल सा
हल्का और
सुगंधित करता है
भाषा उस गीत की
चाहे कोई भी हो लेकिन
उसमें रस हो
लय हो
ताल हो
भाव हो और
किसी अदृश्य साये का
प्रेम के बंधन में जकड़ता
साथ हो
गीत ऐसा हो कि
सूखे मन के रेगिस्तान में
झमाझम
पानी की बूंदें बरसने
लगें
प्यासा हो जो तन और
मन
सबको वह तर दे
मोर पंख फैलाकर
नाच उठे
कोयल कूकने लगे
बादल यहां वहां
उड़ने लगे
फूल क्यारी क्यारी
खिलने लगे
हवायें बह रही हों
चारों दिशायें
ठंडी ठंडी
बर्फ की चादर सी
ओढ़े
कांप रही हों
मौसम हो चाहे
बरसाती
तूफानी
ठंडा
गरम
या
रूहानी
गले से
धीमी धीमी
आवाज में कोई
प्रेम का पहला पहला
सुना हुआ और
यादों में बसा गीत
गुनगुना रहा हो
वह पहला गीत भी
पहले प्यार की तरह ही
हर पल याद आये और
दिल में टीस जगाये
प्यार की एक सुलगती सी
आंच कभी लगाये तो
कभी हौले हौले से
बुझाये भी।