हरि शंकर गोयल

Romance

4  

हरि शंकर गोयल

Romance

वो लम्हे

वो लम्हे

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वो लम्हे कितने हसीं हुआ करते थे 

जब तुम्हारे हाथ हमें छुआ करते थे 

तन बदन में बिजली कौंध जाती थी

दिले अरमान बेलगाम हुआ करते थे 


कितना खूबसूरत सा मंजर था वह 

तेरे मेरे इश्क का समंदर सा था वह 

हसीन ऋतु भी मुस्कुराया करती थी 

मौसम भी मस्त कलंदर सा था वह 


नजरों से नजर बतियाती रहती थी 

लबों पर एक कंपकंपी सी रहती थी 

मेरे कांधे पर सिर रहता था तुम्हारा 

धड़कनें धड़कनों को गिनती रहती थी 


कुछ कहने की जरूरत महसूस ना थी

मोहब्बत की वो घड़ियां मासूम सी थी 

दीवानगी का वो आलम बड़ा प्यारा था 

जिंदगी इससे हसीन कुछ और ना थी 


मिले बगैर दिले महफिल बेरंग सी थी 

कायनात इस इश्क से कुछ दंग सी थी 

छुइमुई की तरह सिमट जाती थी कभी 

और कभी तू उड़ती हुई पतंग सी थी 


आज भी यादों में बसे हैं वो हसीं लम्हे 

जिंदगी के सबसे खूबसूरत थे वो लम्हे 

तुम्हारी चाहत के सच्चे गवाह थे वो लम्हे 

हमारे प्यार की अनकही जुबां थे वो लम्हे।



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