फूल - रंग : मंजिले
फूल - रंग : मंजिले
मैंने कुछ नीले फूल नाली में बहा दिए
अपने पे से कुछ इल्ज़ाम रिहा किये
कब तक रखती साथ कि नफ़्स पर दाग था
रंग ना था आँचल का कि अक्स पर नकाब था
सफेद फूलों को पौधों पर छोड़ दिया
उनकी तरफ से अपना मुंह मोड़ लिया
महक थी रंग था पर शाम होते ही मुरझाते थे
हर दिन किसी और कि सेज पर नज़र आते थे
लाल फूल सज गए किसी और के बालों में
मैं कब तक उलझी रहती उनके ख्यालों में
ख्याल थे तो उनसे जुड़े सवाल थे
कांटे थे उनसे जुड़े जो बेहिसाब बवाल थे
कुछ पीले फूल सुंदर थे पर मेरे थे नहीं
उनके लिए कब तक इंतजार मे फ़ना होती
वो मेरे हिस्से नही थे, चाह में तो थे पर
उनसे जुड़े कभी किस्से नही थे
कुछ गुलाबी, बैंगनी और नारंगी भी थे
जो चले गए उपहारों में कि खुशबू झूठी थी
जो गुलदस्तों की शान हो हर महफ़िल की जान हो
वो किसी का कंहा हो पाता है
बस दूर से मुस्कुराता है
रंगों के साथ ये क्या क्या बह गया
अनजाने ही मन क्या क्या कह गया
एक रंग जो बसंत का था मेरे पास है
फूल सदा नही रहते पर रह पत्ते हरदम पास है
कह गया मौसम पौधों को संभालो
जो ये साथ है तो फूल पास है!
