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ritesh deo

Abstract

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ritesh deo

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बिन मां के बच्चे

बिन मां के बच्चे

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वो बच्चे जिनकी मां नहीं होती

जमाने से नाराज होकर कहां जाते हैं,

कौन उन्हें मनाता है

कौनसा कोना होता है

जहां वो दुबक कर बैठ जाए

सुबक कर रोते रहें..


उदासियां उनकी कौन साफ करता है,

गलतियां कौन माफ़ करता है..

वो बच्चे जिनकी मां नहीं होती

कहां जाते हैं।


किसी से रूठ कर.

खुद रूठ जाते हैं

खुद को मना लेते हैं

रोकर खुद ही चुप हो जाते हैं...

वो बच्चे जिनकी मां नहीं होती हैं

रात जब सांय सांय करती आती है

याद उनको मां भी तो आती है।


वो लोरी वो परियां वो सपनों में राजकुमार का आना

कौन सुनाता है उनको ये कहानियां

वो बच्चे जिनकी मां नहीं होती है।

जब लौटते शाम को खेल कर घर,

जब ऑफिस से घर लौटते हैं

वो ममता के आंचल की छांव कहां पाते हैं।


भूख भी तो लगती है ना उन्हें

वो मां के हाथ की सौंधी रोटी कहां पाते हैं

वो बच्चे जिनकी मां नहीं होती है।

जमाने से नाराज होकर कहां जाते है ?

कहा जाते हैं।


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