मौसम तुम आवारा हो
मौसम तुम आवारा हो
तुझे पाने को विचलित मैं
जब भी अविराम चला हूं
पथ की कठिनाईयों में भी बढ़ा
जग की बेरुखी से भी लडा
नहीं ठहरूंगा तुमसे डरकर
मौसम तुम आवारा हो।
घनघोर बारिश में मैं भीगा
जेठ की दोपहरी में भी तपा
गर्मी से व्याकुल सा मैं
सुनहरे रेगिस्तान में भी चला
नहीं ठहरूंगा तुमसे डरकर
मौसम तुम आवारा हो।
कहीं उपहास का पात्र बना
कहीं गिर कर भी मैं उठा
क्या हुआ सभी ने साथ छोड़ा तो
उसको पाने को मैं अकेला ही चला
नहीं ठहरूंगा तुमसे डरकर
मौसम तुम आवारा हो।
पसीने से तरबतर नंगे बदन
खेतों में जूझते किसान को देखा
हाथों में छाले लिए उस
बेहाल मजदूर को भी देखा
नहीं ठहरूंगा तुमसे डरकर
मौसम तुम आवारा हो।
अपने अधिकारों के लिए
आधी आबादी को खड़े देखा
देश में अमन शांति के लिए
साम्प्रदायिकता से लड़ते देखा
नहीं ठहरूंगा तुमसे डरकर
मौसम तुम आवारा हो।
जाति मजहब के नाम पर
प्यार का गला घुटते देखा
उस बच्चे की आंखों में
कुछ बनने का सपना देखा
नहीं ठहरूंगा तुमसे डरकर
मौसम तुम आवारा हो।
