मन रो मीत
मन रो मीत
गरबे नी रात आवी,
रास नी रुत आवी,।।
ढोल की थाप बुलाए,
ये गीत ये धुन मन को पागल बनाएं,
खेलना हैं रास आज,
गाऊंगी दिल के जज़्बात,
तू भी आजा सांवरिया,
भीगी जाएं ये अंखियां,
गरबे नी रात आवी,
रास नी रुत आवी,।।
ना कर तू ठिठोली,
तुझे पुकारे मेरी सूनी हथेली,
लाल लाल मारी चुनरी पे गोटा लगवा दे,
मैं बेसुध नाचूं ऐसा गीत आज गा दे,
सारे वादे सब झूठे तेरे,
आए हिस्से बस इंतज़ार मेरे,
गरबे नी रात आवी,
रास नी रुत आवी,।।
आजा गरबा खेले,
हम इस जग को भूलें,
एक तू एक मैं और ढोल की थाप,
तेरे संग झूम के बीते ये सारी रात,
अश्विन की बेला ये बीत ना जाए,
गरबे की ये रात रूठ ना जाए,
गरबे नी रात आवी,
रास नी रुत आवी,।।
सांवरे आजा वे,
हारी मैं हारी अब और ना सता रे,
ये रौनक ये तीज सब कितनी है सुहानी,
आजा लिखें हम भी एक अपनी कहानी,
कर के साज श्रृंगार मैं बैठी तैयार,
दिल घबराएं मेरा कितना गहरा हैं ये इंतजार,।।
गरबे नी रात आवी,
रास नी रुत आवी,।।