बेपरवाह
बेपरवाह
1 min
311
ज़िंदगी की दौड़ में ,
तजुर्बा कच्चा ही रह गया।
समझ न पाए दुनियादारी,
दिल बच्चा ही रह गया,
हम खामोश रहते थे,
दिल सुनता कहा किसी का था,
बचपन में जहा चाहे हंस लेते थे,
रोने की वजह ही कहा थी,
और अब मुस्कुराने के लिए वजह ढूंढते हैं,
हम भी मुस्कुराते थे कभी बेपरवाह अंदाज़ से,
आज पूछते है वजह हर बात पे,
कब कब न चाहा की चलो मुस्कुराने की वजह ढूंढते हैं,
बेपरवाह बात पर यूं ही फिर मुस्कुराते हैं।