अदृश्य रावण
अदृश्य रावण
हार कर भी श्री राम से
मैं कभी हारा नहीं
ज़िंदा हूं अभी तक
मैं अभी मरा नहीं
वो त्रेता था आज कलियुग है
फिर भी मैं बेचारा नहीं
इतने समयांतराल में भी
पांव मेरा कभी थरथराया नहीं
आक्रोश आज भी है मुझे राम से
उसे भूलना मुझे गंवारा नहीं
प्रतिशोध जारी है मेरा आज भी
मैंने उसे कभी बिसारा नहीं
हर शख्स में विराजमान हूं आज भी
हर किसी ने मुझे पुकारा है
हर मानव से ही मैं पोषित् हूं
मैंने स्वयं खुद को कभी संवारा नहीं
तुुम राम होकर भी राम ना रहे
मैं रावण से कम कभी रहा नहीं
विस्तृत है साम्राज्य आज भी मेरा
कहीं एक भी घर अब तेरा नहीं
मुझसे भी ज्यादा कपटी आज यहां पर
धर्म कर्म का कोई फेरा नहीं,
दिखावे के हैं राम बने सब
किसी के हृदय में तेरा बसेरा नहीं।।