श्याम मिलन की पीड़…
श्याम मिलन की पीड़…
छोड़ के अपने घाट और बन्धन,
नयन ये मेरे सूखे जाएं एक करन को श्याम के दर्शन।
सुध मन की बिसरायी मैने,
प्रीत ये कैसी लगाई मैने,
जोगन बन के,
बस श्याम की होके,
मैने अपनी सुध बिसराई कमली होके,
दूर हुई मैं अब इस जग से,
की मोहे कब श्याम मिलेंगे,
मैं भटकी हूं दर दर की मेरी मेरे श्याम सुनेंगे।
मोहे अब तो ना भाए रीत कोई जग की,
धुन मोहे भाए एक श्याम भजन की,
कासे बोलूं मैं बात ये मन की,
कोई समझेगा ना प्रीत ये मिलन की,
कौड़ा पानी भी मन को भाए,
कैसे दिल को हम अपने समझाएं,
की मोहे कब श्याम मिलेंगे,
मैं भटकी हूं दर दर की मेरी मेरे श्याम सुनेंगे।
भज के अपने श्याम को हर पल,
मैं तो कर आईं जग के तीरथ,
मैं नाचूंगी होके मगन,
की जब बंसी बजाएंगे मोहन,
मेरी पूजा सुनो मधुसूदन,
आओ मिलने रूप कोई धर कर,
की मोहे कब श्याम मिलेंगे,
मैं भटकी हूं दर दर की मेरी मेरे श्याम सुनेंगे।