हर कन्या मां रूपा
हर कन्या मां रूपा
जगत जननी और इस ब्रह्मांड की रचियता
मेरी माँ इजाजत बिन न हिलता, कोई पत्ता
वही आदि, वही अंत, वही वेद और वही ग्रन्थ
मातारानी ही है, इस ब्रह्मांड की अंतिम सत्ता
नवरात्रि में माता नौ रूपों की होती है, पूजा
मातारानी जैसा जग में दयालु, कोई न दूजा
मातारानी का रूप बन आई, कन्या दुहिता
आओ, हर कन्या को माने मातारानी रूपा
आज कलिकाल में, स्त्री प्रति फैली हुई, कटुता
हर जगह अपमानित हो रही, नारी मां अन्नपूर्णा
जहां स्त्री को कहा जाता, डायन और कुरूपा
वहां पर कभी नही हो सकती, देवो की कृपा
कब सुधरेगा, यह पुरुष प्रधान समाज समुचा
खाना, खिलाता, करता वो कन्याओं की पूजा
दूजी ओर गर्भ में ही मारता, कन्या मां स्वरूपा
फिर कहता, कहां से लेकर आऊं बहु बिजुका
गर गर्भ में मारते रहे, यूँ ही हम लोग दुहिता
भूल जाना फिर वंश बढ़ाने का स्वप्न, अनूठा
सच्ची भक्ति यही, साखी मातारानी की बहुता
गर हर कन्या को समझे, हम मातारानी रूपा।