पागलपन
पागलपन
झुम झुम कर बहके, कदम रखने लगे,
हर उम्मीद हर आरजू से होकर तनहा,
आईना देख देखकर खुद पर हँसने लगे ।
उदासी का चेहरा देखा तो, उदास लगने लगे,
हर ख़ुशी हर मुस्कुराहट पर होकर तनहा
जी भर के हंसे और आँखों से नमक बहने लगे ।
जाने कब उसकी नज़र नसीब बना बैठे अपना,
आज भी ज़िन्दा है बस उनकी चाहत तनहा,
समेटकर देखा खुद को और तनहा रहने लगे ।