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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy

मुस्कुराहट

मुस्कुराहट

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इस ज़माने में वो लोग मुस्कुरायेंगे,क्या

जिन्होंने सदैव ही दूसरों का खून पिया

फिर भी फूल,शूलों से शर्मिंदा होते,क्या

वो खिलखिलाते,शूलों में भी गीत नया


लोगों ने तो आंसुओ पर भी न की,दया

उनमें छद्मता को इस कदर धारण किया

इसमें बेचारे उस मगर,को बदनाम किया

जिसने कभी इंसानी घरों का पानी न पिया

अंधेरे कभी रोशनी को हरा सकते है,क्या


परंतु रोशनी पर पर्दा तो डाल सकते,भैया

जैसे सूर्य को भी डसता,ग्रहण का पहिया

वैसे कभी-कभी छिप जाता,सत्य पिया

बुरे वक्त पर न घबरा,अपना तू जिया


सब्र रख,रात्रि बाद ही होता,सवेरा नया

इस ज़माने में वो लोग,मुस्कुरायेंगे,क्या

जिन्होंने बस बुरा करने का,प्रयास किया

उनके दिल मे न ही कोई लाज,शर्म,हया


वो चंद पैसे में बेच देते,ईमान चिड़ियां

जो लोग यहां पर डूबोते है,दूसरों की नैया

एकदिन रब उन्हें डूबोता,बिना पानी दरिया

इस जीवन को उन्होंने ही जीभरकर जिया

जो नही रखते कोई छल,कपट अपने हिया


उनका तो बिगड़ा काम भी बना देते,कन्हैया

जिन्होंने कभी किसी को धोखा नही,दिया

सच्ची मुस्कुराहट ने,उन लबों को ही छुआ

जिसने कभी न किसी को बुरा,भला कहा।


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