बारिश और बचपन
बारिश और बचपन
बारिश की बूंदों को
हथेली पर इकट्ठा किया तब
बचपन का वो सुनहरा दौर
याद आ गया हम जब
भिगो देते थे इस पानी से
अपने दोस्तों को,भागते थे
खुद को बचाने चहुं ओर
रुके हुए पानी में कूद कर
छींटे उछल उछल कर जब
खुद पर चित्रकारी कर लेते थे
मां की डांट से बचने के लिए
छुप छुप कर घर जाते थे तब
कुछ पूछने पर इसके उसके
ऊपर दोष डाल कर बरी होने
की कोशिश में उल्टी सीधी
कसमें खा लेते थे तब
आज बारिश की बूंदे वही है
हथेली भी वही है मगर
कभी न लौट कर न आने वाला
बचपन तो चला गया।।