स्त्री कीमत
स्त्री कीमत
महिलाओं की पीर कोई भी न जाने
सबके अपने-अपने ही स्वार्थ गाने
परिवार की सेवा कर भी हुए, बेगाने
निःस्वार्थ सेवा कर भी सहे है, ताने
हमारी कद्र कोई भी नही पहचाने
पर जब हुई बीमार, बीमारी बहाने
चित हुई घर व्यवस्था चारों खाने
तब लगा, स्त्री बिन अधूरे, अफसाने
झाड़ू, पोंछा, आये खानाबनाने वाले
ओर उनके पैसे लगे, सोलह आने
तब पता चला, स्त्री कोहिनूरी तराने
स्त्री की कीमत, ये पुरूष क्या जाने
टूटे-फूटे घर को बना देती है, स्वर्ग
स्त्री, मां का दिया अर्क सोलह आने
जो पुरुष, स्त्रियों की कीमत पहचाने
उसका मन दुःख, क्लेश तनिक न जाने।