आखिर क्यूँ...
आखिर क्यूँ...
क्यूँ बेटियों सा दिल बेटे नहीं रख पाते
माता पिता के साथ होकर भी उनके दिलों में झाँक नहीं पाते
मीलों दूर होकर भी बेटियाँ पोंछ देती है उनके आँसू
साथ रहकर भी बेटे उनका दर्द बाँट नहीं पाते
पराया धन पराई अमानत कही जाती है बेटियां
कुल का दीपक वंश का चिराग बेटे हैं कहलाते
तन से दूर होकर भी बेटियां मन से दूर नहीं हो पाती
हर पल पास रहकर भी बेटे कैसे दूर है हो जाते
मां बाप के दर्द से सिहर उठती है बेटियां
उनका हाल जानने को बेटे समय नहीं निकाल पाते
अपने बचपन के दिन भूल जाते हैं बेटे
जब अपने बच्चों को पालने है लग जाते
आखिर क्यूं बेटियों सा दिल बेटे नहीं रख पाते...
