पता नहीं
पता नहीं
पता नहीं किस खोज में हैं
आज कल के लोग ?
ना जीनेका सबर है ना
मरने का असर है।
ना उस मुट्ठी भर रेत का मज़ा है
ना उन लहरों का सुकून है।
ये कैसी प्यास है जो
चाहकर भी न बुझ पाये ?
ना उम्मीद की भूख है
ना शिद्दत की तड़प है।
ना उन ख़्वाबों का ख़्वाब है ना
उन पलों को पालने का वक़्त है।