सफर अपना
सफर अपना
नहीं होगा ये अफ़साना कभी भी मुख़्तसर अपना
कि अब तो हो गया है उम्र से लम्बा सफ़र अपना
कहाँ तक आ गए हैं दूर ख़ुद से भी बिछुड़कर हम
कहाँ होता नहीं था दूर पल भर हमसे घर अपना
पुरानी चाहतों के रास्ते अब भी बुलाते हैं
मगर उन रास्तों से अब नहीं होता गुज़र अपना
तेरी उल्फ़त में ही हम प्यास के सहरा में आए हैं
अगर तू हुक़्म दे दे तो कटा सकते हैं सर अपना
शुरू होता है तुझसे और तुझी पे ख़त्म होता है
न कोई और हो पाया कभी भी उम्र भर अपना।