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Altaf Hussain

Others

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Altaf Hussain

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रहा है वो

रहा है वो

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मेरी ज़िन्दगी में हर दिन गहरा रहा है वो 

कैसे मैं भूल जाऊं कभी मेरा रहा है वो 


वो जो मेरी लकीर में कुछ था नसीब सा 

मेरी  हथेलियों  से घबरा रहा है वो 


शायद खुदा ने भी है लिया दिल से फैसला 

हाथों को सर पे रख कर पछता रहा है वो


सुनते हैं उसने भी है करी खुद से बेरुखी 

मेरी ही दास्ताँ को दोहरा रहा है वो 


सुनते हैं अक्स बोलता है ख्वाहिशें सभी 

जाने क्या आईने को समझा रहा है वो 


साया भी मुझसे रूठ गया जान कर मुझे 

मेरे बदन से अब तो कतरा रहा है वो 


राहों में दूर दूर तलक कोई भी नहीं                

फिर क्यूँ कदम कदम पर टकरा रहा है वो


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