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Saurabh Sharma

Abstract Drama Romance

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Saurabh Sharma

Abstract Drama Romance

लगता है

लगता है

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हर पल हर दिन अब मुझे प्यारा लगता है

शायद तुमने इस दिन को सँवारा लगता है


तुझ से मिल कर इमली भी मीठी लगती है

तुझ से बिछड़ कर शहद भी खारा लगता है


शामों ने हया से नाता जोड़ लिया है क्या

इधर का हर शक्स तेरा ही सुधारा लगता है


एक बार जो रास आ गया दिल को

फिर और किसी से दिल कहाँ दोबारा लगता है


मेरी ग़ज़लों में नाम नहीं ले पाता उसका

इसी का दुःख और दिल को खसारा लगता है


तू कितना ख़ुशक़िस्मत है ये तुझे भी नहीं पता ‘सफ़र’

तू तो क़िस्मत का राज-दुलारा लगता है



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