STORYMIRROR

Saurabh Sharma

Abstract Drama Romance

3  

Saurabh Sharma

Abstract Drama Romance

लगता है

लगता है

1 min
245

हर पल हर दिन अब मुझे प्यारा लगता है

शायद तुमने इस दिन को सँवारा लगता है


तुझ से मिल कर इमली भी मीठी लगती है

तुझ से बिछड़ कर शहद भी खारा लगता है


शामों ने हया से नाता जोड़ लिया है क्या

इधर का हर शक्स तेरा ही सुधारा लगता है


एक बार जो रास आ गया दिल को

फिर और किसी से दिल कहाँ दोबारा लगता है


मेरी ग़ज़लों में नाम नहीं ले पाता उसका

इसी का दुःख और दिल को खसारा लगता है


तू कितना ख़ुशक़िस्मत है ये तुझे भी नहीं पता ‘सफ़र’

तू तो क़िस्मत का राज-दुलारा लगता है



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract