लिखने को पास मेरे
लिखने को पास मेरे
मिसरा-ए-अव्वल संग मिसरा-ए-सानी है,
लिखने को पास मेरे एक लम्बी कहानी है !
शेरों में ढाल के यों अंदाज़-ए-बयाँ है करना,
मतलो से मक्तों की अब तो यही ज़ुबानी है !
जीने को आज कल मैं अल्फ़ाज़ ताकता हूँ,
फिर भर के जाम उनके सब को पिलानी है !
लिख के क़ाफ़िया भी संग है रदीफ लिखा,
कहते इनहि सब को ग़ज़लों की निशानी है !
बहर में जो आए तो बन जाती है वो ग़जल,
उसको तरन्नुम में फिर सबको सुनानी है !
शायरों की महफ़िल में लेके चलूँ मैं 'सफ़र,'
कयी शेर हैं यहाँ के कयी बद-गुमानी है !