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ग़ज़ल

ग़ज़ल

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अपना हाल-ए-दिल सुनाऊँ कैसे,

जो बीता मुझपर वो बताऊँ कैसे !


छन्नी छन्नी कर गये वो दिल मेरा,

दिल के ज़ख़्म वो अब दिखाऊँ कैसे !


कल तक मैं ही उनके दिल में था,

अब ग़ैर है, ख़ुद को समझाऊँ कैसे !


पत्थर के मगर हो कैसे गये वो इतने,

अपनी रूह को ये सब बतलाऊँ कैसे !


धोखाधड़ी हो गयी है शायद ये तो,

अब उनसे आगे रिश्ता निभाऊँ कैसे !


कोशिशें सब बेकार रह गयी 'सफ़र',

खिलके मैं इतना अब मुरझाऊँ कैसे !


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