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Saurabh Sharma

Others Romance

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Saurabh Sharma

Others Romance

क्यूँ है

क्यूँ है

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उन्हें आना ही होता है,

तो जाते ही क्यूँ हैं,

उन्हें फिर मानना ही होता है,

तो रुलाते ही क्यूँ है।


कर दिया अब तो इकरार,

मैंने भी बस दोस्ती का ही,

उनके ही दिल में फिर प्यार उमड़ता है,

तो इतना सताते ही क्यूँ है।


उनके जबीं-ए-तले को,

चूमना चाहते है होंठ मेरे,

शायद उन्हें भी पसंद है तो,

फिर इतना वो शर्माते ही क्यूँ है।


मैं तो अपनी पुरानी आदतें,

भूलना चाह रहा था सब भुला के,

मगर क़बूल वो भी नहि उनको शायद,

तो फिर मुझे वो आज़माते ही क्यूँ है।


वो ख़ुद ही बात बंद कर देते है,

मुझसे मेरी ज़िंदगी में वापस आके,

तो फिर ये दिल को मेरे विरहा के दरिया,

में ऐसे जलाते क्यूँ है।


खुदा का वास्ता मुझे 'सफ़र' अब उनके सिवा,

ना चाह सकूँगा किसी ओर को मैं,

मगर क़िस्मत में हर्फ़ नहि लिखे है उनके नाम के,

तो खुदा भी मेरे मुझे इतना तड़पाते क्यूँ है.।


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