क्या रह गया है प्रतारणा के सिवा हो गई है अब तो पराकाष्ठा हर कथन धूमिल लगता है क्या रह गया है प्रतारणा के सिवा हो गई है अब तो पराकाष्ठा हर कथन धूमिल लगत...
छिटक जाती है हाथों से कभी फिर दौड़ कर थाम लेता हूँ छिटक जाती है हाथों से कभी फिर दौड़ कर थाम लेता हूँ
प्रेम बना रहेगा सदा उसी अभेदता के साथ जैसे मिले हुये हों दो शून्य आपस में प्रेम बना रहेगा सदा उसी अभेदता के साथ जैसे मिले हुये हों दो शून्य आपस ...
कभी प्रेम के वशीभूत हो हम रूठे वो मना न पाए साफ किए न दिल के जाले अंहकार ने जो उलझा कभी प्रेम के वशीभूत हो हम रूठे वो मना न पाए साफ किए न दिल के जाले अंहक...
काट के नहीं हर लम्हे को पिरो लो काट के नहीं हर लम्हे को पिरो लो
कुछ न कह कर ही वे सब बोल देते हैं! कुछ न कह कर ही वे सब बोल देते हैं!