अंतरात्मा
अंतरात्मा
वो अजनबी कुछ जानी पहचानी सी..
हर रोज कुछ तो कहती थी
ना डर ना रुक बस चल अपने डगर पर..
तू कमजोर नहीं तू जननी है।
तेरी अपनी पहचान है।
बिन तेरे इस दुनिया का कोई अस्तित्व नहीं..
चल उठ अपनी नयी पहचान बना
हर रण को जीतने के खातिर...
तलवार जरूरी नहीं होती...
ताकत कलम की किसी तलवार से कम नहीं होती..
मत बन अबला तू शक्ति बन..
नारी नर से कम नहीं होती
पूछा मैंने एक प्रश्न उसे तुम कौन हो...
उसने हँस के बोला पहचान मुझे...
मैं तेरी ही अंतरात्मा की आवाज हूँ
जिससे तू अनजान है।..