दर्द का एहसास
दर्द का एहसास
"माँजी! हाँथ जोड़ती हूँ आपके ।आप चाहे तो अपने बेटे की दूसरी शादी कर दीजिए ।मैं अनुज (पति) को तलाक देने के लिए तैयार हूं, जैसा आप सब कहें मैं करूँगी ।लेकिन कृपा करके मेरी बेटी को जन्म लेने दीजिये" हाँथ जोडकर गिड़गिड़ाती रोती बिलखती हुई रमा ने अपनी सास सरिताजी और पूरे परिवार की उपस्थिति में कहा ।
"चटाक..... चटाक" ।मुँह बंद करो अपना और चुप चाप चलकर कार में बैठो समझी"रमा के पति अनुज ने कहा
अनुज के द्वारा मारे गए थप्पड़ से घुटनों पर बैठी रमा जमीन से चिपक गयी और पेटपकडकर फूट फूट कर रोने लगी। वो रोते रोते सिर्फ इतना ही कह रही थी कि मैं अपनी बेटियों को नही खोना चाहती, प्लीज मुझ पर और मेरी बेटियों पर दया कीजिये।
सरिताजी-"तू कार निकाल बेटा, मैं लेकर आती हूं इसको"
रमा का बांह घसीटते हुई सरिताजी ने कहा"तू चाहती है जैसे तेरी माँ पांच बेटियों की माँ है तू भी रहे, और अपने पिता की तरह मेरे बेटे को निरवंशी बना दे।
और रमा को ज़बरदस्ती कार में बिठा दिया गया। रोती गिड़गिड़ाती रमा को बचाने घर का कोई भी सदस्य आगे नही आया। देवर अमन देवरानी सिया , ननद ननदोई ,ससुर सब मौजूद थे लेकिन सब मूकदर्शक बने देख रहे थे किसी ने कुछ नही बोला सिवाय देवरानी सिया के।
उसने थोड़ी हिम्मत कर के कहा "जाने दीजिये ना माँजी।"
सरिताजी जी की गुस्से से घूरती निगाहे जैसे ही सिया पर पड़ी वो चुप हो गयी।
दरअसल रमा के पहले तीन ऑपरेशन हों चुके थे लेकिन पहले बच्चे के समय भी सरिताजी जी ने नार्मल डिलीवरी की ऐसी जिद पकड़ी की प्रसव दर्द से कराहती रमा ने अंत मे ऑपरेशन से मृत बच्चे को जन्म दिया जो कि बेटा था वो जीवित नहीं रहा, दूसरी और तीसरी ऑपरेशन से बेटियां हुई, डॉक्टर ने बच्चा बंद करने के ऑपरेशन के लिए कहा तो पूरे परिवार ने विचार विमर्श करके मना कर दिया..फिर सरिताजी ने दूसरी पहचान की डॉक्टर से सलाह मशविरा करके ये तय किया कि अब जब रमा गर्भवती होगी तो बच्चा वो चेक कराकर ही जन्म कराएंगी। मतलब चौथा ऑपरेशन।
पूरे घर मे सिर्फ सरिताजी का शासन चलता था बिना उनके इजाजत के क्या मजाल एक पत्ता भी हिल जाए, पैसे रुतबे और बेटो का इतना घमंड था उनको की वो अपने आगे किसी को कुछ नही समझती थी।
लेकिन आज शायद होनी को कुछ और ही मंजूर था अस्पताल पहुंचते ही रमा को हार्टअटैक आ गया और रमा ने अनुज की बाहों में ही दम तोड़ दिया। और अपनी दो बेटियों को इस दुनिया मे छोड़ कर अपनी अजन्मी बच्ची के साथ इस दुनिया से सदा के लिए विदा हो गयी।रमा के जाने का किसी पर कोई फर्क नहीं पड़ा सिवाय रमा की बेटियों और देवरानी के ।जो इस घटना को देखकर भावना शून्य और पत्थर की सी हो चुकी थी।वो सोचने लड़की की अगर लड़की के जन्म पर एक औरत की दुर्दशा पढ़े लिखे और सम्पन्न परिवारों में हो सकती है तो समाज का बेटियो के प्रति सोच मे बदलाव लाना कैसे सम्भव होगा। जब ये भेद घर मे ही नही बंद होगा।
एक महीने बाद अनुज की शादी भी तय कर दी गयी
। शादी की तैयारियां इतने जोर शोर और खुशी से हो रही थी कि देख कर कोई नही कह सकता था कि इस घर मे अभी कुछ दिनों पहले किसी की मौत हुई है।सरिताजी इस शादी को लेकर बहुत खुश थी क्योंकि पंडित जी ने कुंडली मिलाकर बताया था कि नयी बहु की कुंडली मे सिर्फ पुत्र योग है अर्थात वो सिर्फ बेटो को ही जन्म देंगी।
लेकिन कहते है ना कि भगवान के आगे किसी की एक नही चलती और आपको अपने कर्मो की सजा इसी धरती पर भुगतनी होती है। क्योंकि स्वर्ग और नर्क दोनो यही है आपका अच्छा कर्म आपका स्वर्ग और बुरा कर्म आपका नर्क समान ही होता है। इसलिए कहा जाता है कि कर्म प्रधान बनिए।शादी के कुछ दिन पहले सरिताजी के दोनो बेटे और एक शादी शुदा बेटी और पति एकसाथ बाजार शॉपिंग के लिए निकल गए।थोड़ी देर ही हुआ था कि सरिताजी का फोन लगातार बजे जा रहा था सरिताजी ने देखा तो कोई अनजान नंबर से फोन आ रहा था।सरिताजी फोन उठाते दहाड़े मार रोने लगी,उनको रोता देखकर सिया भागती हुई उनके पास गईं तो पता चला कि सभी अस्पताल में भर्ती है।
भागकर सभी अस्पताल पहुंचे लेकिन वहाँ का नजारा देखते सबके रोंगटे खड़े हो गए। एक्सीडेंट इतना भयंकर था कि पूरी कार के परखच्चे उड़ गए थे जिसमें सरिताजी के बड़े बेटे अनुज और बेटी की मौत हो चुकी थी,उनके पति की हालत गम्भीर थी
रोती हुई सरिताजी जब अपने पति रमेशजी के पास पहुंची तो उन्होंने अपने पति से रोते हुए कहा"ये सब क्या हो गया जी,किस पाप की मुझे ऐसी सजा मिली है इतने दान पुण्य किये इतने व्रत पूजा पाठ आप सब की सलामती के लिए किए हे भगवान कहाँ चूक हो गयी मुझसे।"
रमेश जी ने लड़खड़ाती आवाज में कहा"सरिताजी ये सब रमा की आह लगी है हम सबको, खासकर आपको भगवान ने आपके पाप कर्मों की सजा दी उस मासूम सी बच्ची पर बहुत जुल्म किये थे हमने, ये उसकी की सजा है, क्योंकि भगवान के घर न्याय मिलने में देर हो सकती है लेकिन अंधेर कभी नही, कहते हुए उनकी भी सास रुक गयी।
इधर अमन आजीवन के लिए विल चेयर के सहारे हो गए। एक पल में सरिताजी की पुरी दुनिया उथल पथल हो गयी। आज वो रो रो कर कह रही थी कि मुझे माफ़ कर दो रमा मुझे आज तुम्हारे दुख का एहसास हुआ।सिया अपने पति की हालत देखकर बहुत दुखी थी लेकिन अपनी सास को इस तरह से गिड़गिड़ाते हुए रोता देखकर उस का मन बोल पड़ा।सही कहते है लोग "की जब तक खुद को दर्द ना हो तबतक दूसरे के दर्द का एहसास नही होता।"
आज सरिताजी के घर मे बच्चों और वंश के नाम पर सिर्फ और सिर्फ रमा की दोनो बेटियां थी क्योंकि सिया को डॉक्टर ने बता दिया था कि वो कभी माँ नही बन सकती। और अमन आजीवन व्हीलचेयर पर ।सरिताजी आज अपने दोनो पोतियों पर जान झिड़कती है लेकिन इतना कुछ खोने के बाद। सिया ने भी रमा की दोनो बेटियो को अपनी बेटियों की तरह ही प्यार औरदुलार करती ताकि उनको एक माँ की कमी कभी ना महसूस हो।
मन ही मन अपनी सास सरिताजी को देख कर सिया सोचने लगती"माँजी ,काश ये बात आप पहले ही समझ आ गयी होती तो शायद से सब नही होता।"