वो बदल गयी
वो बदल गयी
औरत बदले तो सबको चुभने लगती है।
सब बदले तो किसी को चुभन नहीं हुई।
इंसानों की बात क्या कहे यहाँ अब तो
दरों दीवारें,दरवाजे भी बदल जाते है
जो लोग कल तक सीख देते फिरते थे दूसरी औरतों को
आज जब बात उन के घर की औरत पर आयी
तो उनकी सारी सीख भी बदल गयी।
जिस घर की दहलीज पर औरत का कोई अधिकार नहीं।
उस घर की जिम्मेदारी औरतों के हिस्से दी जाती है।
अपने हिस्से के धन का भी इस्तेमाल करने में
औरतों को एहसान का एहसास कराया गया।
जो घर मे बैठ कर तोड़ते औरतो की कमाई पर मुफ्त की रोटियां
उनसे किसी को भी एहसास नही कराया गया।
उसका भी सारा दोष फिर भी औरत पर ही मढ़ दिया गया।
बदल कर बात कही गयी कि पढ़ी लिखी महिला घमण्डी होती है।
वो घर जोड़ना ही कहाँ जानती है।
अब इन मूर्खो को कौन समझाए घर महिला और पुरूष दोनों के
त्याग, प्यार ,समर्पण और सहयोग से बनता है।
एक पहिए से गाड़ी नही चल सकती तो घर कहाँ बन सकता है।
कोई औरत सबसे कमजोर तब होती है।
जब बेटी रूप में होने पर मायके में पिता
और बहू रूप में होने पर ससुराल में पति
उसका साथ नहीं देते है।
कमजोर पुरुष के साथ से हर औरत कमजोर हो जाती है।
तब उस औरत को ससुराल हो या मायका हर जगह अपमानित
और सिर्फ जरूरत के हिसाब से इस्तेमाल की जाती है।
जब तोड़कर सारे कमजोर बंधन वो खुद के लिए आवाज उठाती है।
तब मजबूत औरतों को भी यही कमजोर
पुरूष कमजोर बनाने की पुरजोर कोशिश करते है।
तब यही मगरूर लोग उसके बदलने की और
चरित्र की झूठी गाथा दुनिया मे बदनाम करने की गाते हैं।
बिना खुद को आईने में देखे उस औरत को
आईना दिखाने की नाकाम कोशिशें करते हैं।