क्यों
क्यों
कुछ लफ़्ज़ों से मैं सवाल करना चाहती हूँ........
जैसे कि 'क्यों'....
कभी कभी वह तुम्हे क्यों....
कहते कहते रुक कर वह पूरा सवाल ही दाग देता है....
तुम्हे अधिकार चाहिए क्यों?
तुम्हे बराबरी चाहिए क्यों?
तुम्हे चॉइस चाहिए क्यों?
इस क्यों ने जैसे दुनिया को बदल दिया...
औरतें दुय्यम दर्ज़े की हो गयी.......
यह 'क्यों' ही है जिसने हम औरतों से सवाल करना शुरू किया...
255, 255, 255); text-decoration-thickness: initial; text-decoration-style: initial; text-decoration-color: initial; display: inline !important; float: none;">वह हमसे वज़ाहत करता है....
कभी कभी यह 'क्यों' वाला लफ्ज़ हम औरतो के वजूद पर ही सवाल करता हुआ लगता है......
मुझ जैसी आज की औरत को महसूस होता है कि अगर यह 'क्यों' नही होता तो दुनिया कितनी बदली बदली सी होती....
अगर आप को भी यही लगता है तो यकीनन आप औरत होंगी...
और जिसे नही लगता वह पुरुष होगा....
जो बिल्कुल नहीं चाहेगा की उसके अधिकार को कोई चुनौती दे......
वह क्यों चाहेगा कि कोई औरत उसकी बराबरी करे?
तो फिर क्या करे? छोड़ दे इस 'क्यों' को?
हाँ ! हाँ !!
क्यों नही आज से इस 'क्यों' वाले लफ़्ज़ को हम 'क्यों नही' में बदल दे?