मोह- माया
मोह- माया
कुछ नहीं हैं प्यार- व्यार
सब मोह- माया हैं
अपने स्वार्थ के आगे
कोई कभी जीत पाया हैं ?
लाख करले कोई किसीके लिये,
हमेशा खुद को आगे पाया हैं
कुछ नहीं हैं प्यार- व्यार
सब मोह- माया हैं
अपनो इस नगरी में
हर कोई पराया हैं
कुछ नहीं है प्यार- व्यार
बस सब मोह- माया हैं।
