मैं लिख नहीं पाया
मैं लिख नहीं पाया
तुझे ही मांगा हरदम,
हर बार तेरे ही सजदे में सर झुकाया
तूं तो शायद भूल गया मुझे
मैंने हर सांस में तेरा ही नाम दोहराया
मिलते होंगे तुझे हज़ार मेरे जैसे,
मुझे आज तक तुझसा एक नहीं मिल पाया
तेरी रुसवाई का सितम ये भी रहा
दिल जलता तो रहा मगर फिर धड़क नहीं पाया
अपनी नज़रों से गिरता रहा, दर-ब-दर हुआ
इन कीमतों पर भी तेरी आंखों में घर नहीं पाया
लिखना तो चाहता था तुझे बेवफ़ा
पर ये अल्फाज़ तुझपे नहीं जँचता, सो मैं लिख नहीं पाया
मैं लिख नहीं पाया...
