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Garima Mishra

Classics Fantasy

4  

Garima Mishra

Classics Fantasy

स्याही

स्याही

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ख़्वाहिशात के पन्नों पर बिखरी कोई सुंदर स्याही हो

वो बारिश के बूंदों सी बिन बोले मन में आई हो

कोई वादे की चादर ओढ़े ना भार संग में लाई हो


इंद्रधनुष के सात रंग सी बादल में इठलाई हो 

कुछ ऐसी ही छवि सजाकर मेरी यादें तुझमें आई हो

जैसे ख़्वाहिशात के पन्नों पर बिखरी कोई सुंदर स्याही हो...


मुहब्बत में चांद तारे तोड़ लाने के ना झूठे कोई सपने हो

तुम में आधी मैं रहूं, और आधे मुझमें तुम, मेरे अपने हो 

रंग बिरंगे फूलों सी लहराती लम्हों की क्यारी हो


मैं तुझमें जीना सीख सकूं तो दुनिया कितनी प्यारी हो

आख़िर में बस प्यार बचे, एक ऐसी विपदा आई हो 

जैसे ख़्वाहिशात के पन्नों पर बिखरी कोई सुंदर स्याही हो...


तुम शब्द शब्द जोड़ो मुझको, दुनिया के आगे पेश करो

सब कुछ कह दो मेरे बारे बस नाम मेरा ना आने दो

तुम कैनवास पर रंगों से मेरी कोई तस्वीर गढ़ों


कोई पूछे तो कह दो, सपनों में आती है,

तुम वहां भी मेरा नाम ना लो 

मन के गीत ग़ज़ल सब घूम फीर कर मुझ पर ही बस आई हो 

जैसे ख़्वाहिशात के पन्नों पर बिखरी कोई सुंदर स्याही हो...


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