प्रेम से मुक्त
प्रेम से मुक्त
प्रेम अगर रणभूमि बन जाए,
तो वाणी भी रक्तरंजित होती है।
जहाँ हर शब्द प्रमाण बने,
वहाँ मौन भी अपराध गिना जाता है।
मैं क्यों करूँ सिद्ध
कि मेरी जगह तुम्हारे हृदय में है?
प्रेम यदि है, तो वह होगा
साक्षी नहीं, सन्देह से परे।
अगर तुम्हें मेरी उपस्थिति
मेरे ही आंसुओं से लिखनी पड़े,
तो उस प्रेम की दीवारें
मुझसे नहीं तुम्हारे भ्रम से बनी हैं।
जहाँ प्यार को भी
पदवी पाने को संघर्ष करना हो,
वहाँ हार प्रेम की नहीं
तर्क की होती है।
मुझे प्रेम चाहिए
पूज्य नहीं, प्रतिस्पर्धा नहीं।
जहाँ मुझे जीता न जाए,
बस समझा जाए।
इसलिए लौट चली हूँ
ना जंग हारी हूँ,
ना प्रेम।
केवल त्यागा है वह युद्ध
जो प्रेम कहलाकर
मुझसे प्रेम ही छीन रहा था।
