तुम कहो, क्या लिखूं?!
तुम कहो, क्या लिखूं?!
तुम्हारी और मेरी पहली मुलाकात लिखूं,
या पहली दफा जो हुई दरमियां हमारे वो सारी बात लिखूं?
मैं तो लिख सकती हूं पूरी किताब तुमपर,
तुम कहो!
मैं हर दिन के नज़्म लिखूं या कुछ ही बस अहससात लिखूं?!
तुमने बताया था तुम्हारे मनपसंद गीत,
जो नहीं मिला वो सबसे पहला मनमीत।
कैसे तुमने पापा के जाने के बाद कामों में मां के हाथ बटाएं,
कैसे बचपन में तुम शरारतों में शामिल नहीं हो पाए
तुम्हारी हर बात कैद है मेरे दिल में
तुम कहो!
इस किस्से की कैसी मैं शुरुआत लिखूं
मैं हर दिन के नज़्म लिखूं या कुछ ही बस अहससात लिखूं?!
तुम्हारे मिलने से पहले,
जो थी मैं मनमौजी, अपने पापा की बिगड़ी हुई बेटी
जिसकी जाने कितनी नादानियां तुमने बड़े सब्र से समेटी
उस अल्हड़ लड़की के प्रेम में बदले हुए जज़्बात लिखूं?
या विरह में मिले वो असहनीय सारी रात लिखूं?
तुम कहो!
इस किस्से की कैसी मैं शुरुआत लिखूं
मैं हर दिन के नज़्म लिखूं या कुछ ही बस अहससात लिखूं?
वो हमारे जन्मों के साथ के लिए बांधे मन्नत के धागे लिखूं,
या जो निभा नहीं पाए हम वो सारे वादे लिखूं?
तुम्हारी खूबियां लिखूं, अपनी खामियां लिखूं,
या नामुकम्मल इश्क़ की मुकम्मल कुछ कहानियां लिखूं?
मैं तो लिख सकती हूं पूरी किताब तुमपर
तुम कहो!
मैं हर दिन के नज़्म लिखूं या कुछ ही बस अहससात लिखूं
कोई शिकायत नहीं लिखनी,
ना मेरे पास लिखने को बेवफाई के हज़ार किस्से हैं
कैसे लिखूं, मुझमे सांस लेते अबतक तुम्हारे हिस्से हैं
प्रेम में हुए वो सारे बदलाव लिखूं
कल थी नहीं जो मैं, अपना वो आज लिखूं?
तुम कहो!
इस किस्से की कैसी मैं शुरुआत लिखूं
मैं हर दिन के नज़्म लिखूं या कुछ ही बस अहससात लिखूं?!
मैं तो लिख सकती हूं पूरी किताब तुमपर
तुम कहो!
मैं तुम्हारी कौन सी बात लिखूं?!