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Babu Dhakar

Drama Others

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Babu Dhakar

Drama Others

निकम्मा दोस्त

निकम्मा दोस्त

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320

बेखबर हो इसलिए खबर में आते नहीं हो

बेसब्र हो इसलिए सब्र करते नहीं हो

गुमान इतना भी अच्छा नहीं कि नजर ना आओ

बेहतरीन

क्या

हो गये

कि अपने दोस्त को ही भूल जाओ।

शान से हो या परेशान हो

गांव के हो या शहरी बन गये हो

अहंकार अच्छा नहीं कि अपना आकार ना देख पाओ

भूल

क्या

हमसे हो गयी

कि अपने दोस्त से यूं रुठ जाओ।

विशेष बन गये हो या शेष भी नहीं रहे हो

रोब है किसी पर या विरोधी बना लिये हो

अपमान इतना भी अच्छा नहीं कि दिल टूट जाये

बता

इसलिए

रहे है हम

कि अपने दोस्त को पहचान ही नहीं पा रहे हो ।


सहन करने की भी हद होती है

तुम से बातें जो अब नहीं होती है

किसी और से अगर मुलाकात हुई है

तो हम कर भी

क्या सकते हैं

कि हमारे दोस्त की आंखें बेचारी चार हो गई हो ।


बेख्याली में भी यह ख्याल किसका है

बेसुध होकर सुध किसकी लेते हो

विचारों में अपने आचरण भूलने वाले

हम

बतायें तो

बताये

किसे

कि हमारे दोस्त में ऐसे संस्कार कैसे आये।

चार दिन की चांदनी और फिर वो ही जीवन

भार से छुटकारा पाने को त्रस्त है हमारा जीवन

कब बदल जाए वक्त पर कोई दोस्त

हम

कहें तो

कहें क्या

कि हमारे दोस्त को इस वक्त कहें तो क्या।


यहां स्वाधीन होकर भी कोई किसी के विचारों के अधीन है

पिंजरे में कैद से पंछी है पर अपने पेट भरने को लेकर निश्चिंत है

यहां अकेले में बेकार ही परेशान कौन होना चाहेगा

जब

मिलता

बेईमानों का साथ

तब कौन

अपने निक्कमे दोस्त के साथ रहना चाहेगा ।।


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