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Anita Sharma

Drama Tragedy Classics

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Anita Sharma

Drama Tragedy Classics

मनकही

मनकही

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दबी कंठध्वनि

मुंद चुके नेत्र

मूक ज़ुबान

क्षीण कर्णशक्ति

शून्य स्पर्श


यूँ ही नहीं...

खो देती हैं इन्द्रियाँ

अपने यथार्थ को !

सब मर जाता है खुद ही

रोज़ होती है मुलाकातें जब

बहरे,नेत्रहीन और गूंगे

भावहीन सायों से !


दुर्भाग्यवश ज़हन में

स्थायित्व पा जाता है

वो खंडित प्रेम-बिंदु

पनप जाती है आस्था

कैद होकर वादों में !


भावों के प्रेत कभी

पीछा नहीं छोड़ते !


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