ख़त
ख़त
मैंने ख़त लिखना चाहा..
उस पते प़र जहां अब कोई नहीं रहता।
पत्र में लिखा वो नाम,
जिसके आगे अब कोई संबोधन नहीं होता।
लिखा..
"कुछ नहीं";
क्योंकि
अब लिखने को कुछ नहीं था।
आखिर में लिखना था
"तुम्हारी"..
मगर ठीक वहीं आके स्याही ख़त्म हो गयी।
फिर,
कुछ नहीं लिखा।
और वहां से जवाब भी आया,
कि यहां अब तेरा कोई नहीं रहता।