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Lady Gibran

Abstract

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Lady Gibran

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होलियाँ हमका बड़ा लुभावे

होलियाँ हमका बड़ा लुभावे

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होलियाँ हमका बड़ा लुभावे सखी री,

श्यामल प्राण प्यारे से मिलावे है।


करता हरकतें छिछोरी मगर सखी री,

हमरी सारी अंगिया भिगावे है।


नंद का लाल बड़ा सतावे सखी री,

लठ्ठ भर वो देखो मार खावे है।


बिनती कर कर थक गए सखी री,

उसे तनिक भी दया न आवे है।


निर्मोही को कैसी लाज शर्म सखी री,

कैसा बना बेदर्दी, बाज़ न आवे है।


चेहरे का वो रंग उड़ा ले जावे सखी री,

शर्म से पानी पानी कर जावे है।


रंग प्रित का कान्हा एसा डारे सखी री,

अपने ही रंग में मोहे रंग जावे है।


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