तुम...
तुम...
ये जो हमदर्दी मुझ से जता रहे हो,
कुछ उम्मीदें तुम भी तो लगा रहे हो।
कोई क्यों बांटेगा दर्द किसका,
कुछ तो हैं जो तुम छुपा रहे हो।
है इश्क तुम्हें या कोई और बात है,
जिसे कहने से तुम कतरा रहे हो।
हूँ हैरान में भी ये सब देखकर,
जिसे दोस्ती तुम बता रहे हो।
सुकून मिले मुझे अगर बोल दो तुम,
चुप रहकर क्यों इतना सता रहे हो।
जाने क्या हैं तेरी इस हँसीं के पीछे,
जो बिन बात के ही मुस्कुरा रहे हो।