आख़िर क्यों?
आख़िर क्यों?
कहते हैं कि, नींव होती है जो माँ
तो,
होता है पिता आशियाने की छत!
दुःख सहकर बच्चों को है पालता
वो।
उस बेटी का क्या!
जिसको पैदा करने का बनें कारण
वो,
और पालनहार न बन के, संहारक बने तो!?
उम्मीदें रखें हजारों उससे, पर दुत्कारें सुबह शाम उसे,
गलती क्या थी उसकी, बेटी बन जन्मीं ग़र वो!!
तुमने ही तो जन्मा था उसे, नफ़रत करनी थी तो करते खुद से ही!
अपने बड़े भाई के बच्चों से तुलना कर कर
अपमानित करने का किसने दिया था हक़ तुम्हें कलयुगी जनक जी?
न सिखाया चलना और न खेले उससे कभी प्यार दुलार से!
जिल्लतें ही भरी ज़माने भर की उसकी झोली में तुमने!
न मिला प्यार घर में तो निकली ढूँढ़ने घर के बाहर वो,
बेरहमी से पीटा तुमने सरेआम कॉलेज में, क्या करती वो!?
झाँसे में आ गई, फँस गई गुंडे के चंगुल में वो,
बिना छानबीन के ब्याह दिया उसे नपुंसक से क्यों?
न घर की रही न घाट की, दर बदर भटकती रही दिन रैन।
न की क़ीमत तुमने उसकी, तो ठुकराया औरों ने भी उसे।
बदसलूकी की चुका रही क़ीमत आज भी वो रहकर दुनिया से जुदा,
क्यों किया तुमने ऐसा, क्या बिगाड़ा था उसने तुम्हारा!
आज, कोई नहीं उसके आगे-पीछे,
न जीने को है रुतबा, धन और रहने को छत!
लूट लिया तुम्हारे अपनों ने उससे,
पागल क़रार देकर छोड़ दिया उसे मरने बेमौत!
आज फादर्स डे मनाते हैं तेरे अपने, उस नादान को भूलकर,
उसके हिस्से की ख़ुशियाँ रौंदकर, ठहाके लगाते हैं झूम झूमकर।
नहीं मनाती वो फादर्स डे या मदर्स डे या बर्थडे कभी,
फ़ातिहे न पढ़ें कभी तुमने उसके होने की खुशी में,
और क़सीदे पढ़ते चले गए ताउम्र उसके वजूद पे!!
क्यों!?
उससे पहले के और बाद के तीनों को अबॉर्शन से मरवाया था जैसे,
उसे भी मरवा देते ओ बेरहम! ज़िंदा रख क्या उम्दा किया उसके वास्ते तूने?
न मनमर्ज़ी का पढ़ पायीं वो, न मनमर्ज़ी का जी पाई!
तेरी उम्मीदों पे ख़रा उतरने को, हरदम घुटती, तड़पती रही वो।
तुमने तो बस हर वक्त चाहा छुटकारा पाना ही उससे,
कौन से जन्म की दुश्मन थी तुम्हारी जो तुमने ऐसा सुलूक किया उससे!!
क्या दुआ माँगें वो रब से अब इस अकेलेपन में वो!
रूह काँप रही उसकी अब भी ताउम्र सी बेचारेपन में जो।
अब तो कुछ सिला सीखा तेरे अपनों को उस जहां से,
की जीने दे उसे अब तो, अपने तरीके से इस जहां में!!
आख़िर क्यों? ~ पापा, कुछ कहना है तुमसे।