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Mrugtrushna Tarang

Tragedy

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Mrugtrushna Tarang

Tragedy

न रहा ऐतबार

न रहा ऐतबार

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ग़ुरबत में क्यों उलझ गई सारी किश्तें

लफ़्ज़ों का ग़ुबार बदल सा गया प्यार में!


होने लगा तुमसे ए दिल क्यों कर प्यार,

जब न रहा तुम्हें हम पे तनिक सा भी ऐतबार!!


अल्फ़ाज़ लुढ़कने लगे बे वज़ह यहाँ वहाँ,

कलियाँ खिलकर भी मुरझा गई कहाँ कहाँ।

 

गुलज़ार हो चला था गुलशन आने से तेरे,

पतझड़ ही छा गया, बसंत जाने से पहले।


 देर सवेर दिखला ही दी तूने अपनीं बदनीयती ये,

 काश! पहचान पातें, संभल जातें खुशकिस्मती से।


सुबह को छा जाती यहाँ जब जब बहारें,

कोयल की कूक से गुनगुनातें मेघ मल्हारे


जीवन को मेरे कर देता था जो ख़ुमार,

 जलायें अब भूलाकर दी तुमनें जो ख़ुशियाँ हज़ार!!


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