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Dinesh paliwal

Tragedy

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Dinesh paliwal

Tragedy

।। वक़्त जो संग हमने जिया ।।

।। वक़्त जो संग हमने जिया ।।

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जब ये हवाएँ साथ न थी,

हौसले थे तब भी न कम,

आज आंधियां को है साधा,

क्यूं कर रुकेंगे अब कदम ।।


जिंदगी को हमने जिया बस,

अब तलवार ही की धार पे,

ठोकरों ने शाजिस सी की है,

क्यों मायूस तुम एक हार पे।।


फिर बरगलाया है किसी ने,

मेरी मासूम माशूका को आज,

राह में फिर अब आ खड़े हैं,

बेज़ा नखरे, बिगड़े मिज़ाज़।।


करदें हम तो पत्थर को बुत,

ऐसा हुनर है हासिल किया,

बुतपरस्ती माफ़िक़ न आई,

बस जिंदगी से है ये गिला ।।


यूं तो उसने भी मुझे बस,

मायूस जाने जब तब किया,

एक जिंदगी के लिए काफी,

वो वक़्त जो संग हमने जिया।।


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