नफरत की आंधियों में बेगुनाहों के घर जलते हैं घनी बस्ती है फिर भी मोहब्बत को तरसत नफरत की आंधियों में बेगुनाहों के घर जलते हैं घनी बस्ती है फिर भी मोहब्ब...
मैं थी कि दीपक बचाती रही मैं थी कि दीपक बचाती रही
वक्त़ के साथ तुम्हें चलना है, गिरना हैंं गिरकर तुम्हें सभलना हैं। वक्त़ के साथ तुम्हें चलना है, गिरना हैंं गिरकर तुम्हें सभलना हैं।
बुतपरस्ती माफ़िक़ न आई, बस जिंदगी से है ये गिला । बुतपरस्ती माफ़िक़ न आई, बस जिंदगी से है ये गिला ।
उठो ,चलो, गिरो मगर रूको नहीं, रूको नहीं! उठो ,चलो, गिरो मगर रूको नहीं, रूको नहीं!
आजकल की दुनिया में ये कैसी विषैली सोच भर गई है। आजकल की दुनिया में ये कैसी विषैली सोच भर गई है।