वो किसी और
वो किसी और
नफरत की आंधियों में बेगुनाहों के घर जलते हैं
घनी बस्ती है फिर भी मोहब्बत को तरसते हैं
झुर्रियां पड़ जाती हैं एक मकान ,
एक दुकान,एक शख्सियत बनाने में
सिरफिरे इस बात को कहां समझते हैं ?
आज़ादी की खातिर क्या कुछ कुर्बान नहीं किया हमने
इतिहास के पन्ने दर्ज हर एक खबर रखते हैं ,
अफ़सोस गुनाहगारों को कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ता
वो किसी और दुनिया को जन्नत समझते हैं।
