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dr. kamlesh mishra

Abstract Drama

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dr. kamlesh mishra

Abstract Drama

वक्त़

वक्त़

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वक्त़ के साथ तुम्हें चलना है,

गिरना हैंं गिरकर तुम्हें सभलना हैं।

वक्त़ की आँधियाँ  तुम्हें झुकायेगी,

फिर भी अनुुकूल हवाओं के साथ तुम्हें चलना है।


यह संसार की  सर्द हवा तुम्हेंं पथरायेगी,    

ग्रीष्मका तापबनकर तुुुम्हें पिघलना है।  

तुुुुम्हारे बढते कर्मपथ से दुनिया तुम्हें डिगायेगी,

बनाकर मंजिल को हम सफर आगे तुम्हेंं निकलना है।



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